व्ही.एस.भुल्ले/विलेज टाइम्स समाचार सेवा। कहते है विष तो जिदंगी के लिए घातक होता है मगर विश्वासघात पीडिय़ां नष्ट कर देता है। जब-जब मध, मुग्ध...

क्योंकि सफलता का मूल हमेशा से प्रमाणों में नहीं प्रमाणिकता में रहा है। जिसे हम अनुभूति भी कह सकते है। जब मध में चूर स्वयं सिद्ध सत्तायें विवेक विशेषज्ञता, प्रतिभाओं का अवसरों के अभाव में निहित स्वार्थो के चलते अपमानित कर, उनकी उपयोगिता को अस्वीकार्य करती है। तब ऐसी मध मुग्ध सत्तायें न तो कभी स्वयं का भला कर राज सत्ता की उपयोगिता सिद्ध कर पाती है। न ही उस भोली-भाली अभाव ग्रस्त मायूस, बैवस, जनमानस सहित जीव, जगत का भला कर पाती है। जो उन्हें अपनी सत्ताओं से अपेक्षित और नागरिक होने के नाते उनका अधिकार होता है।
कहते है किसी भी राजा का राजधर्म उस राष्ट्र व जन कल्याण में निहित होता है। जिसके लिए वह अस्तित्व मेें होता है। उसका कार्य व्यवहार ही उसके परिणामों का आधार होता है। जबकि अनुभूति स्थाई प्रमाण जिन्हें आंकड़ों की नहीं, आत्मविश्वास से भरे एहसास की आवश्यकता होती है। जिसका आभाव अनादिकाल से स्वार्थवत, मध मुग्ध सत्ताओं के रहते रहा है।
जब-जब सत्ताओं के प्रति आवाम में अविश्वास तथा स्वार्थवत सत्ताओं ने अपनी ही आवाम के साथ विश्वासघात किया है। तब-तब न तो ऐसी सत्ताओं का भला हो सका, जो आंकड़े और प्रमाणों को अपनी अन्तिम उपलब्धि मानती रही है, न ही उस आवाम का जो सत्ताओं को ईश्वरीय स्वरूप मान उनमें अपनी आस्था व्यक्त करती रही है और पीढिय़ां बर्बाद हो गयी। फिर ऐसी सत्तायें, राजा, सम्राट, सुल्तान, बादशाह, सभा, परिषदों के रुप में रही हो या फिर संगठित समूह व्यक्ति, संस्थाओं के रुप में।
इसलिये जब तक सत्ताओं का सफर में से लेकर तक में उलझा रहेगा तब तक सफलता का आधार आंकड़ा प्रमाण बना रहेगा और प्रमाणिकता अनुभूति का एहसास कोसो दूर।
जय स्वराज
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