व्ही.एस.भुल्ले, विलेज टाइम्स समाचार सेवा। संगठनात्मक, सार्वजनिक या राजनैतिक संगठन की अक्षमता, असफसलता का जबावदेही किसी एक व्यक्ति पर थोपन...

खासकर तब की स्थिति में जब विद्या, विद्ववान, बलवान उस दरबार में तिरस्कृत और नौजवान जबावदेही के मोहताज तथा राजा या मुखिया स्वार्थी, चाटूकार, चापलूसों के काकस से घिरा हो। और राज्य की या संस्था, संगठन, दल की प्रतिभायें अवसर पूर्व ही दम तोडऩे मजबूर हो। ऐसी स्थिति में जनमानस स्वयं ही राजा को मूर्ख समझने लगता है या फिर प्रतिद्वन्दी या फिर महत्वाकांक्षी स्वार्थी लोग उसे मूर्ख घोषित करने के अपने महत्वकांक्षी अभियान को हवा दे।
कहते है कि अगर राजा अक्षम भी हो तो बुद्धिमान सलाहकार, सहयोगी दरबारी ही नहीं, एक आम साधारण नागरिक, सदस्य, कार्यकत्र्ता ही अपनी बुद्धिमत्ता कौशल के सहारे उसे महान बना देते है। मगर वर्तमान लोकतंत्र ही नही आजादी के अगुवा रहे। एक महान संगठन की ऐसी दुर्गति भी स्वार्थ महत्वकांक्षी लोगों के चलते उसकी हो सकती है शायद ही किसी ने सपने में सोचा होगा जिसका दौर 2014 से लगातार चल रहा है यू तो इसकी शुरूआत 90 के दशक से ही हो चुकी थी मगर बीच के दशक 2003 में फिर इस दल को प्रतिष्ठा पूर्ण विराम मिला। मगर 2014 से जो दौर शुरू हुआ वह आज तक थमने का नाम ही नही ले रहा आज भी इस महान संगठन के सिपहसालारों, सलाहकारों की कार्य प्रणाली, आचार-व्यवहार, भाषा, बॉडी लैंग्वेज और संचालन का तरीका ऐसा कि लोग दांतो तले उंगली दबा जाये।
खासकर जिसके सामने कई क्षेत्रीय मजबूत दलों के अलावा सफलता की ऊंचाईयों छूता एक ऐसा दल है जिसे लगभग छोटे-मोटे आधे सेंकड़ा से अधिक संस्था, संगठनों का जमीनी सहयोग प्राप्त है कहते है नियति को कौन बदल सकता है फिर वह सामाजिक क्षेत्र हो या फिर राजनैतिक क्षेत्र। जब जागो तभी सवेरा, तभी एक मजबूत लोकतंत्र और स्वयं की पहचान कायम रह पायेगी। मगर अब जवानी जमा खर्च और कुचिन्तन पूर्ण मुद्दों से इस दल का भला होने वाला नहीं। बेहतर हो खुली शुरुआत हो, और खुला दरबार जिसमें हर एक को सहज अवसर प्राप्त हो, तभी यह महान दल अपनी सार्थकता सिद्ध कर पायेगा।
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