
सफलता, असफलता के अंक जनता को देना है। कहते है कि लोकतंत्र में सर्वोच्च निर्णय भी जनता का होता है और अगर 2018 के आम चुनाव में जनता ने शिव सरकार में आस्था व्यक्त करती है। तो निश्चित ही शिव सरकार की सफलता और सत्ता सिंहासन भी उन्हीं के हाथ होगा। लेकिन अगर हम व्यवहारिक यथार्थ पर जाये तो शिव सरकार ने बड़े-बड़े विज्ञापन और मंच से भाषणों में कहा गया कि वह भय, भूख, भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश बनायेगी। तो इसमें कोई संदेह नहीं, कि मुख्यमंत्री की घोषणा अनुसार या तो म.प्र. में डकैत रहेगें या वे, तो दस्यु विहीन म.प्र. बनाने में ही नहीं व नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सल गतिविधियों को रोकने में वह सफल रहे है।
रहा सवाल भूख का तो अन्तोदय, अन्नपूर्णा, अन्तोदय रसोई के माध्यम से वह उन लोगों की होने वाली मौतों को रोकने में सफल रहे, जो अतिपीडि़त वंचित है। भ्रष्टाचार के मामले में जैसा कि उन्होंने मेरे ही सवाल उत्तर में दूरिस्ट विलेज शिवपुरी में कहा था कि भ्रष्टाचार की सफाई वह ऊपर यानी गंगोत्री से करेगें तो उन्होंने म.प्र. को दो वरिष्ठ आई.ए.एस अधिकारियों को बर्खास्त ही नही जेल भिजवा यह साबित किया कि भ्रष्टाचार पर वह कितने सतत रहे।
इतना ही नहीं, लाडली लक्ष्मी कन्यादान, मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन, मुख्यमंत्री मेघावी छात्र सहित कई ऐसी सीधे लाभ की योजनायें रही। और वह सियासी तौर भी राजनीति से ऐसे नेताओं को इकनोर करने में सफल रहे जो कहीं न कहीं स्वच्छ, राजनीति में आड़े आते थे उनके नेतृत्व में दूसरी मर्तवा भाजपा सरकार का गठन इस बात के प्रमाण है कि सत्ता में भी सफल रहे और सियासत में भी।
मगर सुस्पष्ट विजन डिटेल डी.पी.आर और क्रियान्वयन की असफलता लापरवाह नौकरशाही वह परिणाम बैठक और आंकाड़ों के अलावा नहीं दे सकी जो आम जन को अपेक्षित थी चाहे वह शिक्षा, स्वास्थ, रोजगार, सडक़, बिजली और प्रति व्यक्ति आय या फिर किसानोंकी आय हो वह 12 वर्ष में भी जब 3-3 पीढिय़ां नये स्वरुप में हो। मगर इन क्षेत्रों में आशा-आकांक्षा अनुरुप बदलाव का न आ पाना अपने आप में यक्ष प्रश्न है। अगर यो हे कि मुख्यमंत्री की 18-18 घन्टे की मेहनत और उनकी स्पष्ट सेवा भावी मंशा को असली जामा पहनाने में नौकरशाही, अक्षम, असफल साबित हुई तो कोई अतिसंयोक्ति न होगी।
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