व्ही.एस.भुल्ले। म.प्र. भोपाल 30 दिस बर 2015- खत्म होती 2015 के साथ 2016 के शुरुआती दौर में विगत वर्षो से प्रकृति के प्रकोप की शिकार होती ...
क्योंकि अल्प वर्षा के चलते या अतिवर्षा औला, इल्ली सू ाा के चलते वर्तमान खेती बचाने जिस तरह से मौजूद जलश्रोतों का दोहन जारी है और भू या वाह जल स्तर गिर रहा है। उस पर से कुछ दिनों से निकल रही चटक धूप रह-रह कर शायद यह संदेश देने की कोशिस कर रही है कि अगर वर्ष 2016 के शुरुआती दौर अर्थात जनवरी माह में मावठ नहीं पढ़ी तो खेती किसानी में अकाल सुनिश्चित है।
सूत्रों की माने तो व्यवस्था का हाल तो फिलहाल बेखबरों जैसा है। मगर कुछ व्यवस्थापक अवश्य योजना बना बड़े ओहदेदारों तक भावी योजनायें भेज यथा स्थिति से अवगत कराने का प्रयास कर रहे है। मगर जिस तरह की रस्सा कसी सत्ता और शासन अलमबरदारों के बीच अलाली को लेकर चल रही है उसे देखकर नहीं लगता कि अकाल के मुहाने पर खड़ी खेती किसानी या फिर प्रदेश के दुरांचल क्षेत्रों में पल रहे, पशुधन सहित गांवों में रहने वाले लेागों के लिये भीषण गर्मी के दौर के लिये बहुत कुछ होने वाला है। क्योंकि दूरदर्शी सोच और सार्थक प्रयास अभी भी मूकदर्शक बन एक दूसरे का मुंह ताकने पर मजबूर है और सियासत सत्ता बनाये रखने में, देखना होगा कि इस सब के बीच क्या कुछ हो पाता है।
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