व्ही.एस.भुल्ले। व्यापाम को लेकर मचे राजनैतिक घमासान में हो रही सियासत के मंथन का परिणाम जो भी हो, मगर प्रारंभिक परिदृश्य से तो यही लगता...
व्ही.एस.भुल्ले। व्यापाम को लेकर मचे राजनैतिक घमासान में हो रही सियासत के मंथन का परिणाम जो भी हो, मगर प्रारंभिक परिदृश्य से तो यही लगता है कि इस सियासी मंथन में बहुत कुछ प्रदेश की भगवान बनी जनता के सामने आने वाला है।
हो सकता है, लेाकतंत्र में गहरी आस्था तथा जनता को भगवान और स्वयं को भक्त, सेवक बता सत्ता का दुरुपयोग कर सत्ता सुख भोगने वालो के चेहरे से नकाब उतर जाये। जैसी कि स भावना दिखाई पढ़ती है।
क्योंकि व्यापाम की आग अब किसी संत्री या मंत्री तक सीमित नहीं रही, अब इसकी लपटे राज भवन तक जा पहुंची है।
जिसमें अभी कई लेागों की गर्दन नपना बाकी है जिस तरह से व्यापाम में नये-नये नामचीन नामो के खुलासे हो रहे है या होने वाले है, उसके चलते भले ही म.प्र. सरकार फिलहॉल बैकफुट पर दिख रही हो।
मगर नेक नियती पर तो सवाल बनते ही है फिर म.प्र. के मु यमंत्री भी तो खबर नबीशों के बीच जता चुके है कि विपक्षी दल उनकी सरकार से किस हद तक ज्वलेसी रखते है। आखिर नेक दिल इन्सान ने सदन में विपक्ष के आचरण को देख कह ही दिया कि आज का दिन काला रहा, लेाकतंत्र, संसदीय पर पराओं सभी को तार-तार की गई है। मैं अपनी बात भी सदन में पूरी नहीं रख पाया।
बहरहॉल ये तो एक नेक दिल मु यमंत्री की मंशा है। न कि सियासत, मगर जो आयना सियासत को समय दिखाने वाला है। शायद उसका स्वरुप कॉफी वीभत्स हो सकता है।
क्योंकि जो हालत विगत 11 वर्षो में विपक्षी दल कॉग्रेस की हुई है और जो हालत आज सत्ताधारी दल की व सरकार की बन गई है। और जो सियासी घमासान पक्ष विपक्ष के बीच मचा है उसके मंथन से जो निकलने वाला है।
अपुष्ट सूत्र और सॉशल मीडिया में चल निकली चर्चाओं की माने तो। व्यापाम से झुझलाई सरकार अब आरोप लगाने वालो के खिलाफ जांच करा हड़काने का काम कर सकती है। अगर सरकार यह कदम उठाती है। और समय आड़े आया तो आयने में सियासत साफ नजर आ सकती है तब फिर लेाकतंत्र का क्या होगा। हालाकि सरकार की ओर से फिलहॉल इस तरह के कोई संकेत नहीं।
मगर ऐनकेन प्राकेण सत्ता में बने रहने वालो के मंसूबे साफ दिखाई देते है। जो जब हर हॉल में परिवर्तन चाहते है। जिनके पास गवाने कुछ भी नहीं मगर पाने बहुत कुछ है।
अपुष्ट सूत्रों की माने तो व्यापाम की लपटे तेज हुई और नेक नियती तार-तार हुई तो निश्चित ही इसमें सबसे बड़ा लाभ उन्हीं लेागों को होने वाला है। जो शुरु से ही साम,दाम,दण्ड, भेद की राजनीति करते आये है।
ये सच है कि म.प्र. के व्यापाम घोटाले में अपराध हुआ है। और वह भी जघन्य जिसमें कईयो के तो भविष्य तक चौपट हो चुके है। और कईयो के होने वाले है।
व्यापाम म.प्र. ही नहीं देश की राजनीति और लेाकतंत्र में सत्तासीनो या सत्ता का वह सच है। जिसे देख सभी आज नाक मुंह सकोड़ इसे बुरा कहते नहीं थक रहे। और इन्सानियत के नाते यह दिखता भी वीभत्स है। मगर आजादी से लेकर आज तक म.प्र. ही नहीं देश भर में कई उदाहरण है। जो लेाकतंत्र में सेवक और जनभक्तों के असली चेहरे दिखाने काफी है और लेाकतंत्र की मजबूरी, क्योंकि जिस लेाकतांत्रिक व्यवस्था में जनप्र्रतिनिधि, नौकरशाह, व्ही.आई.पी. कहे जाते हो, जो लोकतंत्र की राजा जनता के वोट से चुन राजाओं की तरह नजर आते हो, ऐसे में इन लेाकतंत्र के राजाओं की सिफारिस, फोन, पर्चियों कहने पर व्यापाम जैसे कई और काण्ड हो जाये तो हर्ज कैसा ? यह तो स्वभाविक प्रक्रिया है।
जिस लेाकतंत्र में नौकरी से लेकर ठेका, एजेन्सी, पोस्टिंग, आग्रह या सिफारिसों पर होते हो, लेाकतंत्र में सत्ता के सिर मोर बनने लाखों करोड़ों खर्च होते हो। कभी देश की राजनीति में चन्दा देेने वाले ही अब स्वयं राजनेता हो। ऐसे में कौन तो चंदा देगा और कौन सेवा करेगा।
अभी हाल ही में हुये पंच परमेश्चरों के निर्वाचन में खुलकर नोट, तमच्चे, बन्दुकों लठलुहागियों की चर्चा ठंडी नहीं पढ़ी है। चर्चा और अपुष्ट सूत्रो की माने तो अधिकतम रेट 5000 रही है लाखो की सरपंची और करोड़ों की अध्यक्षी की हवा आखिर क्यों चली है।
मामला साफ है कि इस तरह की घटनायें अब लेाकतंत्र में सत्ता तक पहुंचने की सीढ़ी बन रही।
अगर व्यापाम की आग में और लपटे उठी तो निश्चित ही हमारे महान लेाकतंत्र में सियासत का कुरुप चेहरा अवश्य सामने आयेगा मगर इस घटिया सियासत में कई नेयनियत नेताओं का वेबजह ही सूपड़ा साफ हो जायेगा। क्योंकि अब यह स्थापित लेाकतंत्र कि मजबूरी बन चुकी है। अब इसे कोई स्वीकारे या नकारे सच शायद यहीं है।
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