कांग्रेस का झण्डा पकड़ भाजपा से दो-दो हाथ करने वाले केन्द्रीय वाणिज्य उघोग राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गत दिनों इन्दौर में हुय...
कांग्रेस का झण्डा पकड़ भाजपा से दो-दो हाथ करने वाले केन्द्रीय वाणिज्य उघोग राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गत दिनों इन्दौर में हुये म.प्र. क्रिकेट एसोसिएशन (एम.पी.सी.ए.)के चुनाव में अपने प्रतिद्वंदी म.प्र. सरकार के ताकतवर और इन्दौर क्षेत्र में सिक्का जामये बैठे लोकनिर्माण मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को खासा पटखनी दे मालवा में अपना परचम लहरा दिया है।
हालात यह है कि सिंधिया के 150 मतों के जबाव में कैलाश विजयवर्गीय को मात्र 73 वोट ही मिल सके। इतना ही नहीं इस चुनाव में सिंधिया पैनल के सभी 9 सदस्यों ने जबरदस्त जीत दर्ज कराई।
म.प्र. क्रिकेट एसोसिएशन का चुनाव भले ही सीमित हों मगर म.प्र. की राजनीति में इसके दूरगामी परिणाम हों सकते है। क्योंकि जिस ग्रुप को सिंधिया ने उन्हीं के सरकार और पार्टी के क्षेत्र में घुसकर उसके चलते समुचे में यह संकेत स्पष्ट है कि नहीं महा कौशल, विध्य, बघेल, बुन्देलखण्ड में सिंधिया ने गत वर्षो धुआंधार दौरे कर भाजपा के सामने जो चुनौती पेश की है। इन्दौर में जबरदस्त जीत की उनकी पहली किश्त कही जा सकती है।
जिस तरह से वह अपने दौरो के दौरान पूरी वाकपटुता और स्पष्ट के सोच के साथ कांग्रेस और राहुल गांधी की उपलब्धियों को रखते है। वह किसी से छिपा नहीं।
अगर सिंधिया की सफलताओं का क्रम यू ही जारी रहा तो 2013 में भोपाल भी दूर नहीं। क्योकि जिस जीवटता और ऊर्जा के साथ वह समुचे प्रदेश में भाजपा के खिलाफ अभियान छेड़े हुये है। उसकी भनक शायद भाजपा को भी है। मगर भाजपा भी युवा ऊर्जावान ईमानदार चमकदार छवि वाले नेता से आमने सामने का युद्ध लडऩे के बजाये दांये-बांए हो कांग्रेसी कुनबे मे ही मची उठापटक को हवा दे। मिशन 2013 को सफल बनाने लगी है। मगर खुदा-ना-खास्ता जिन कांग्रेसियों को हवा दे वह तीसरा बार सत्ता का सपना देखने में लगी है। उन्हें दरकिनार कर कांग्रेस आलाकमान ने म.प्र. की वागडोर अगर सिंधिया को सौंप दी तो भाजपा के सत्ता सपने को कपूर होते देर नहीं लगेगी। मगर ऐसा होगा इसमें भी कई सवाल है।
म.प्र. क्रिकेट एसोसिएशन का चुनाव भले ही सीमित हों मगर म.प्र. की राजनीति में इसके दूरगामी परिणाम हों सकते है। क्योंकि जिस ग्रुप को सिंधिया ने उन्हीं के सरकार और पार्टी के क्षेत्र में घुसकर उसके चलते समुचे में यह संकेत स्पष्ट है कि नहीं महा कौशल, विध्य, बघेल, बुन्देलखण्ड में सिंधिया ने गत वर्षो धुआंधार दौरे कर भाजपा के सामने जो चुनौती पेश की है। इन्दौर में जबरदस्त जीत की उनकी पहली किश्त कही जा सकती है।
जिस तरह से वह अपने दौरो के दौरान पूरी वाकपटुता और स्पष्ट के सोच के साथ कांग्रेस और राहुल गांधी की उपलब्धियों को रखते है। वह किसी से छिपा नहीं।
अगर सिंधिया की सफलताओं का क्रम यू ही जारी रहा तो 2013 में भोपाल भी दूर नहीं। क्योकि जिस जीवटता और ऊर्जा के साथ वह समुचे प्रदेश में भाजपा के खिलाफ अभियान छेड़े हुये है। उसकी भनक शायद भाजपा को भी है। मगर भाजपा भी युवा ऊर्जावान ईमानदार चमकदार छवि वाले नेता से आमने सामने का युद्ध लडऩे के बजाये दांये-बांए हो कांग्रेसी कुनबे मे ही मची उठापटक को हवा दे। मिशन 2013 को सफल बनाने लगी है। मगर खुदा-ना-खास्ता जिन कांग्रेसियों को हवा दे वह तीसरा बार सत्ता का सपना देखने में लगी है। उन्हें दरकिनार कर कांग्रेस आलाकमान ने म.प्र. की वागडोर अगर सिंधिया को सौंप दी तो भाजपा के सत्ता सपने को कपूर होते देर नहीं लगेगी। मगर ऐसा होगा इसमें भी कई सवाल है।
क्या कांगे्रेस अपनी परम्परावादी नीति जिस पर की ज्वलंत विचार की चर्चा है कि हर क्षेत्र से एक छत्रप को समुची बागडोर सौप 2013 के चुनाव में उतरा जाये जिससे क्षेत्रीय नेता भी सन्तुष्ट रहेंगे और कांग्रेस के नम्बर भी बढ़ेगें। चाहे दिग्वजय, राहुल सिंह, कमलनाथ, अरुण यादव हो या फि र सिंधिया सभी को समुचित नेतृत्व दे कांग्रेस को मजबूत किया जाये। मगर आलाकमान को यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस तरह का माहौल म.प्र. में कांग्रेस भाजपा को लेकर है। उसमें पिटे मोहरों के बजाये अगर नये मोहरों से बाजी खेली जाये तभी कांग्रेस का भला हो सकता।
ऐसे में कांग्रेस का झण्डा लिये, स्व राजीव, सोनिया, राहुल गांधी की बातें तथा आम गरीब, देशवासियों के लिये सोच और संघर्ष को परोस पाती आम जन मे आम गरीब के बीच रात गुजारने वाले सिंधिया के अलावा म.प्र. में कोई दूसरा चेहरा नहीं।
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